आखिर क्यों लगाई प्रधानमंत्री ने रोटी बेटी माटी की गुहार?

आखिर क्यों लगाई प्रधानमंत्री ने रोटी बेटी माटी की गुहार? क्या है झारखण्ड का काला इतिहास

झारखंड के आदिवासियों का हक छीन कौन रहा है?

Jharkhand Election: हर एक राज्य का इतिहास होता है आज हम आपको झारखंड के एक ऐसे इतिहास की चर्चा करेंगे इसके बारे में सुनकर आप चौंक जायेंगे। कल्पना कीजिए कि यदि आपके घर में जबरदस्ती कोई घुसकर कब्जा कर ले और वही बस जाए तो आपकी हालत क्या होगी? कुछ इसी प्रकार का हाल झारखंड का भी हो गया है। तो चलिए पूरे विस्तार से हम आपको बताते की झारखंड अभी किस हाल में है खासकर वहां के आदिवासी लोगों की हालत कैसी है।

बड़े बड़े नेताओं का आया बयान

चुनावी रैली के दौरान चाहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हो या फिर गृह मंत्री अमित शाह या यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उन सभी ने झारखंड के इस काले इतिहास के बारे में चर्चा की है। उनके भाषण का मुद्दा आदिवासी रहे। इतना ही नहीं प्रधानमंत्री मोदी ने रोटी बेटी माटी का नारा देते हुए कहा कि उनकी सरकार यदि झारखंड में आई तो आदिवासियों से उनका हक कोई नहीं छिनेगा। पर सवाल यह उठता है कि आखिर झारखंड के आदिवासियों का हक छीन कौन रहा है? आखिर किन परिस्थितियों से गुजर रहे हैं झारखंड के आदिवासी?

आदिवासियों का हक छिनता जा रहा है

 

तो इस घटना की शुरुआत होती है 90 के दशक से जब सबसे अधिक मात्रा में बांग्लादेशी घुसपैठी भारत में आने लगे। कुछ असम में कुछ बंगाल में तो बहुत अधिक मात्रा में झारखंड की ओर बढ़े। यह घुसपैठी बांग्लादेश से बॉर्डर के माध्यम से होते हुए झारखंड राज्य में आए और आदिवासियों के इलाके में बसने लगे। अपने आप को आदिवासियों के साथ स्थापित करने के लिए इन्होंने उनकी बेटियों से शादी करनी शुरू कर दी। शादी के बाद आदिवासियों के जमीन पर उनकी नजर पड़ी तो उन्होंने उनके जमीनों पर भी कब्जा करना शुरू कर दिया। घुसपैठी यहां तक नहीं रुके उन्होंने आदिवासी महिलाओं को आरक्षण का फायदा उठाकर चुनाव लड़ने को भी प्रेरित किया जब महिलाएं चुनाव जीत जाती थी, तो सारी ताकत मुखिया पति के हाथ में आ जाती थी, और वह और भी ज्यादा ताकतवर हो जाता था। एक समय के बाद आजाद रहने वाली आदिवासी महिलाओं ने परदा करना भी शुरू कर दिया। कई इलाकों में धर्म परिवर्तन की भी खबरें आई।

17 हज़ार से भी अधिक आए घुसपैठी

घुसपैठियों का मुद्दा पिछले दो दशक से काफी ज्यादा देखने को मिल रहा है, यहां तक की कोर्ट में इन घुसपैठियों को वापस भेजने के लिए याचिका भी दर्ज की गई थी लेकिन इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। 90 की शुरुआत में 17000 से ज्यादा अवैध-बांग्लादेशों की पहचान यही हुई थी उनके वोटिंग राइट्स तो खत्म हो गए लेकिन उन्हें वापस उनके देश नहीं भेजा गया। आज इन बांग्लादेशी घुसपैठीयों का मुद्दा झारखंड के इतिहास का एक हिस्सा बनते जा रहा है यह काला इतिहास है इसके बारे में लगभग हर चुनावी दल हर चुनावी पार्टी बात कर रहा है।